Sunday 1 April 2018

कद्दूवर्गीय सब्जियों का गोंदिया तना झुलसा (गमी स्टेम ब्लाइट) अथवा काला सड़न रोग तथा इसकी रोकथाम




भारतवर्ष की अधिकांश जनसंख्या शाकाहारी है और इस कारण से यहाँ के लोगों के आहार में सब्जियों तथा फलों का विशेष  महत्त्व है। सभी प्रकार की सब्जियों में कद्दूवर्गीय सब्जी फसलों का प्रमुख स्थान इसलिए होता है क्योंकि ये सब्जियाँ प्रायः वर्षभर उपलब्ध रहतीं हैं तथा पौष्टिकता के मामले में इनका कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं है। भारत के उत्तरी मैदानी भागों में गर्मी के मौसम में, जबकि अधिकतम वनस्पतियाँ सूख जातीं हैं और बिना संरक्षित कृषि के हरी सब्जियों की खेती संभव नहीं होती, कद्दूवर्गीय सब्जियाँ घर-आँगन तथा पिछवाड़े लता की तरह उगाई जा सकतीं हैं और इस कठिन समय में मानव पोषण का महत्त्वपूर्ण साधन होती हैं।

सभी प्रकार की वनस्पतियों की भाँति कद्दूवर्गीय सब्जी फसलों में भी अनेक प्रकार के रोगों का आक्रमण होता है। ये रोग न केवल सब्जी उत्पाद की गुणवत्ता में गिरावट के लिए उत्तरदायी होते हैं बल्कि उत्पादों तथा उपज की मात्रा में भी भारी कमी करते हैं जिससे न केवल सब्जी उत्पाद की मात्रा में कमी होती है बल्कि उसके पोषण मान पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। गोंदिया/चिपचिपा तना झुलसा (गमी स्टेम ब्लाइट) और काला सड़न (ब्लैक राॅट) खरबूजा, तरबूज और ककड़ी की एक सामान्य बीमारी है। ये दोनों एक ही रोग के दो नाम अथवा दो विभिन्न अवस्थाएँ हैं। जब रोग पत्तियों तथा तनों को संक्रमित करता है तो यह अंगमारी के लक्षण उत्पन्न करता है तथा ऐसे में इसे गोंदिया तना झुलसा (गमी स्टेम ब्लाइट) रोग कहा जाता है। इसके विपरीत जब रोग का संक्रमण फलों पर आता है तो यह फलों के विगलन अथवा सड़न के लक्षण उत्पन्न करता है और तब इसे काला सड़न (ब्लैक राॅट) रोग कहा जाता है। यह काला सड़न वाली अवस्था फसल कटाई के बाद भी जारी रह सकती है। सड़न के कारण फलों में दुर्गन्ध आने लगती है। 

रोग के लक्षण तथा इसकी पहचानः
गोंदिया तना झुलसा रोग के लक्षण पहले पत्तियों के किनारों पर प्रकट होते हैं। पत्तियों के किनारों पर भूरे रंग के धब्बे बनते हैं जो धीरे-धीरे अन्दर की ओर बढ़ते जाते हैं। कद्दू, ककड़ी और समर स्क्वैश में पर्ण संक्रमण अंग्रेजी के अक्षर ‘वी’ के आकार वालेे भूरे रंग के धब्बों के रूप में पर्णफलक के ऊतकों में विकसित होता है। इन पर्णीय धब्बों को श्यामव्रण (एन्थ्रैक्नोज) के धब्बों के साथ आसानी से भ्रमित हुआ जा सकता है। हालांकि, चिपचिपा तना झुलसा के घाव अपेक्षाकृत गहरे रंग के, लक्ष्य पट्टिका (टारगेट बोर्ड) की तरह अथवा धारीदार स्वरूप (जोनेट पैटर्न) वाला होता है और इससे पत्ती के ऊतकों का क्षय श्यामव्रण की अपेक्षा कम होता है। तरबूज में भूरापन शिराओं के बीच भूरे रंग के विवर्णन या भूरे/गहरे लाल रंग के गोलाकार धब्बे के रूप में प्रकट होता है। इन धब्बों के चारों ओर पीले रंग का घेरा (हैलो) हो सकता है और पुराने धब्बे प्रायः शुष्क और फटे होते हैं। विन्टर स्क्वैश में तने अथवा पत्ती में गोंदिया/चिपचिपा तना झुलसा अवस्था नहीं प्रकट होती है किन्तु फल बनते समय काला सड़न अवस्था विकसित हो सकती है। कद्दूवर्गीय सब्जी फसलों में गोंदिया तना झुलसा अवस्था संक्रमित तनों पर विकसित होती है, जो अक्सर पौधे के शीर्ष के निकट होता है। संक्रमण के ये घाव आमतौर पर खुले होते हैं और इनसे चिपचिपे, तृणमणि (अम्बर) रंग के द्रव का स्रावण होता है। तनों पर होने वाले संक्रमणों में मुहांसों की भाँति उठी हुई रचनाएँ दिखाई देती हैं जिनके भीतर रोगकारक कवक के बीजाणुओं का उत्पादन होता है। इन बीजाणुधानियों से चिपचिपे निःस्राव निकलते हैं। फलों की सड़न प्रारम्भ में जलसिक्त धब्बों के रूप में दिखाई देती है जो आगे चलकर पूरी तरह काले रंग के हो जाते हैं। फलों का संक्रमण खड़ी फसल की अवस्था अथवा भंडारण, दोनों ही क्षेत्रों में विकसित हो सकता है।

रोगजनक तथा रोग की जैविकीः
कद्दूवर्गीय फसलों का गोंदिया/चिपचिपा तना झुलसा अथवा काला सड़न रोग एक कवकजनित रोग है और इसका कारक डिडिमेल्ला ब्राॅयनी नामक कवक होता है। यह रोगजनक कवक पौधों की सतह पर बने विक्षतों (घावों) के माध्यम से पौधे में प्रवेश करता है। ये विक्षत कीटों जैसे भृंगों (बीटल्ज़), माहुओं (एफिड्स) और रोगों जैसे चूर्णिल आसिता (पाउडरी मिल्ड्यू) से पीड़ित पौधों में बनते हैं। यही कारण है कि कीटमुक्त पौधों की तुलना में कीटों की वजह से मामूली रूप से घायल होने की वजह से कीट-प्रभावित पौधों में काला सड़न और चिपचिपा तना झुलसा रोग अधिक होता है। रोग सामान्यतः पौधे के मध्य भाग से प्रारम्भ होता है और बाहरी ओर को बढ़ता है। लताओं पर रोग का प्रारम्भिक संक्रमण सामान्यतः गाँठों पर होता है जो लता (तने) पर ऊपर तथा नीचे की ओर लम्बवत् बढ़ता है। यह संक्रमण जलसिक्त धारियों के रूप में प्रकट होता है जो आगे चलकर समय के साथ पीले-भूरे से लेकर धूसर रंग का हो सकता है। षुश्क मौसम में तनों के संक्रमित भाग फट जाते हैं तथा उनसे गोंद जैसा चिपचिपा पदार्थ स्रावित होना प्रारम्भ हो जाता है। गोंदिया तना झुलसा तथा काला सड़न रोग के लिए रोगजनक कवक का निवेशद्रव्य संक्रमित बीज के माध्यम से खेतों में आ सकता है और पुरानी फसल के मलबे में एक फसली मौसम से दूसरे फसली मौसम तक जीवित रहता है। नम मौसम होने पर वर्षा ऋतु में कवक के नए निवेशद्रव्य (बीजाणु) उत्पन्न होते हैं जो पानी की बूँदों के आघात (वर्षा के छींटों) तथा पत्तियों पर मौजूद नमी के द्वारा पूरे क्षेत्र में आसानी से फैल जाते हैं। उच्च वातावरणीय आर्द्रता रोग के प्रकोप तथा प्रसार की दर में वृद्धि करने में सहायक होती है। संक्रमण के लिए रोगजनक के निवेशद्रव्य का स्रोत संक्रमित फसल के अवशेष, मिट्टी, खरपतवार और संक्रमित बीज होते हैं। निवेशद्रव्य का प्रसार हवा और हवा के धाराओं के माध्यम से फैलने वाले बीजाणुओं के द्वारा सम्पन्न होता है। 

रोग की रोकथाम तथा इसका प्रबन्धनः
स्वस्थ फसल से प्राप्त साफ, शुद्ध तथा प्रमाणित बीज सदैव ही भरोसेमन्द स्रोत से खरीदें क्योंकि संक्रमित बीजों के माध्यम से रोग का प्रसार नवीन क्षेत्रों तक संभव हो जाता है। संक्रमित फसल से कभी भी बीज एकत्रित न करें। एक ही स्थान में कद्दूवर्गीय परिवार के किसी भी सदस्य का रोपण करने से पहले इसका अन्य कुल के सब्जियों के साथ दो या अधिक वर्षों तक का फसल-चक्र अपनाएँ। जल प्रबन्धन के लिए जहाँ तक संभव हो, ऊपरी छिड़काव (स्प्रिंकलर) के बजाय ड्रिप सिंचाई का उपयोग करें। छोटे बगीचों में मौसम के अंत में संक्रमित फल और लताएँ खेत से बाहर निकालें और उन्हें सुरक्षित रूप से नष्ट करें। बड़े क्षेत्रों में, फसली मौसम के अंत में संक्रमित फसल अवशेषों को सुरक्षित रूप से नष्ट करने के लिए उन्हें खेत से निकालकर किसी बगीचे अथवा अनुत्पादक भूमि में ले जाकर मिट्टी में गाड़ दें अथवा मिट्टी का तेल डालकर जला दें। फसल में पौधभक्षी कीटों के प्रबन्धन के साथ-साथ बुआई के लिए चूर्णिल आसिता (पाउडरी मिल्ड्यू) के लिए प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करें या इस रोग को नियंत्रित करने के लिए उपयुक्त कवकनाशियों का छिड़काव करें। ककड़ी के भृंग (बीटल) और अन्य कीट जैसे माहू आदि कीटों को नियंत्रित करने के लिए एकीकृत कीट प्रबंधन प्रथाओं का उपयोग करें। रोग के रासायनिक प्रबन्धन के लिए न केवल वाणिज्यिक उत्पादकों बल्कि किसानों को भी विशिष्ट कवकनाशी सिफारिशों के लिए वैज्ञानिकों अथवा विशेषज्ञों से संपर्क करना चाहिए। एक सामान्य संस्तुति के अनुसार गोंदिया/चिपचिपा तना झुलसा तथा काला सड़न रोग के रासायनिक प्रबन्धन के लिए क्लोरोथैलोनिल अथवा मैंकोजेब का जलीय घोल (0.2 प्रतिशत) छिड़काव के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

2 comments: