समेकित नाशीजीव प्रबंधन (आईपीएम) और आय में वृद्धि
डॉ. जय पी. राय
कृषि उत्पादकता
बढ़ाने के उद्देश्य से उत्पादन तकनीक में वैज्ञानिक विकास लगभग एक स्थायित्व पर पहुँच
गया है और किसान की आय को बढ़ाने के लिए उत्पादन तकनीक में विकास के आधार पर फसल उत्पादकता
में लघुगणकीय वृद्धि पर्याप्त सीमा तक असंभव प्रतीत होती है । इसलिए,
खेती के व्यवसाय से लाभ बढ़ाने के लिए अन्य संभावित विकल्पों पर
ध्यान देना आवश्यक हो गया है। पादप संरक्षण तकनीक ऐसी क्षमता प्रदान करती है
क्योंकि फसलों में कीटों और रोगों से होने वाले नुकसान काफी अभूतपूर्व हैं और अगर
इसे रोक लिया जाय तो इससे फसल की उपज और किसान की आय में उल्लेखनीय वृद्धि संभव हो
सकती है।
रासायनिक नाशीजीव नियंत्रण बनाम एकीकृत कीट प्रबंधन:
समकालीन शस्य
उत्पादन में, किसान रोग एवं कीट नियंत्रण के लिए अधिकतर शस्य
सुरक्षा रसायनों के प्रयोग पर भरोसा करते हैं। हालांकि, किसानों
से सीधे संपर्क वाले लोगों की बढ़ती गतिविधियों के कारण, चाहे
वे प्रसार कार्यकर्त्ता, शिक्षक/पर्यावरणविद या शोधकर्ता हों,
और सामाजिक नेटवर्क के प्रवेश की दर में वृद्धि के कारण कृषकों से इनके वर्धित
संवाद के चलते किसानों में शस्य सुरक्षा रसायनों के खतरों के बारे में जागरूकता
बढ़ी है। यह, वस्तुत:, न केवल मौद्रिक अर्थ
में, बल्कि कृत्रिम रासायनिक जैवनाशकों के उपयोग की
व्यवहार्यता/औचित्य सहित सामाजिक-पर्यावरणीय दृष्टि से शत्रुजीव प्रबंधन के लिए
रासायनिक विकल्पों के पुनर्मूल्यांकन की ओर अग्रसर कर रहा है। रासायनिक शत्रुजीव नियंत्रण
न केवल महँगा है, बल्कि इसके अपने निहितार्थ भी हैं जैसे कि
अन्यथा द्वितीयक शत्रुजीव या मामूली शत्रुजीव के प्राकृतिक शत्रुओं का विनाश जिससे
यह मामूली शत्रुजीव अपने प्राकृतिक
शत्रुओं के अभाव में शस्य की अधिक हानि का कारण बनता है और संबंधित भौगोलिक
क्षेत्र में द्वितीयक या मामूली शत्रुजीव से प्रमुख शत्रुजीव की स्थिति तक उन्नत
हो जाता है। यह एक मुख्य कारण है जिसके चलते कई क्षेत्रों में रासायनिक जैवनाशियों
के उपयोग में वृद्धि के कारण शत्रुजीव परिदृश्य बिलकुल परिवर्तित हो गया है (पेशिन एवं साथी (२००७)। इसके अतिरिक्त,
शत्रुजीवों में रासायनिक जैवनाशियों के लिए प्रतिरोध के विकास की
वर्धित दर के कारण नए जैवनाशक अणु के विकास में लगने वाला पैसा भी इसके अंतिम
उपयोगकर्ता, यानी किसान की जेब से ही तो निकाला जाता है। पादप
संरक्षण रसायनों के वर्धित और अविवेकपूर्ण अनुप्रयोग ने कर्षण क्रियाओं द्वारा
शत्रुजीव नियंत्रण के विशेष संदर्भ के साथ शत्रुजीव नियंत्रण के अन्य उपायों की प्रभावकारिता
को बहुत बुरी तरह प्रभावित किया है। शत्रुजीव नियंत्रण के लिए कृषि रसायनों के अविवेकपूर्ण
अनुप्रयोग से कीट प्रबंधन की लागत में वृद्धि के माध्यम से फसल की लागत में वृद्धि
हुई है और इसलिए रासायनिक कीट नियंत्रण कई चरणों में महँगा (और लंबे समय में अनार्थिक)
सिद्ध हुआ है। ऐसी जटिल और विकल्पहीन स्थिति में शत्रुजीवों से होने वाली हानि को
अधिक किफायती और सार्थक तरीके से रोकने के लिए एकीकृत शत्रुजीव प्रबंधन (आईपीएम) रणनीतियों
को लागू करने की आवश्यकता है। अपने बहु-आयामी दृष्टिकोण के कारण, आईपीएम लक्षित शस्य-शत्रुजीवों का कुशल प्रबंधन करता है जिसमें सुनिश्चित
स्थायित्व और शत्रुजीव में प्रतिरोध के विकास की न्यूनतम संभावनाएँ होती हैं।
आईपीएम और कृषक आय में वृद्धि:
कृषक आय वृद्धि
को दो संदर्भों में देखने की आवश्यकता है- उपज के श्रेष्ठतर मूल्य के माध्यम से आय
में वृद्धि और खेती की लागत में कमी के माध्यम से निवेश में कमी। हम निम्नलिखित अनुच्छेद
में इन दो संदर्भों में एकीकृत कीट प्रबंधन की भूमिका की परिकल्पना करेंगे:
श्रेष्ठतर
भोजन, श्रेष्ठतर मूल्य: जैविक खाद्य उत्पादन
के लिए आधुनिक कृषि में आईपीएम की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। जैविक उपज
बाजार में उच्च मूल्यों पर क्रय जाती है और कृषक के आय वर्धन में योगदान के लिए कई गुना अधिक पैसा मिलता
है। इसलिए, आय में सुधार करने वाले गुणवत्तायुक्त खाद्य
पदार्थों के उत्पादन के लिए कृषि में आईपीएम आवश्यक है।
खेती
की लागत में कटौती करने के लिए संसाधन संरक्षण:
आईपीएम कृषि में संसाधन संरक्षण की विषय-वस्तु के मूल में है। शस्य-अवशिष्ट,
जो रोगजनकों और कीटों के लिए भोजन और आश्रय के स्रोत के रूप में काम
करता है, को शस्य-पोषण के लिए गुणवत्तायुक्त उच्च पोषण मूल्य
वाली कार्बनिक खाद में परिवर्तित किया जा सकता है। इस तरह की गुणवत्ता वाली खाद को
नीम या करंज की खली या ट्राइकोडर्मा जैसे बायोकेन्ट्रोल एजेंटों के साथ सोधकर
मिट्टी में मिलाया जा सकता है, ताकि मृदा शत्रुजीवों की संख्या
को कम किया जा सके और जिससे श्रेष्ठतर खेती, उन्नत पौध-उद्भवन
और प्रति इकाई क्षेत्रफल में फसल के पौधों की एक अच्छी संख्या सुनिश्चित हो सके। जैविक
शत्रुजीवनाशक एकीकृत कीट प्रबंधन का एक
अभिन्न अंग हैं जो शत्रुजीव प्रबंधन के लिए पादप सुरक्षा रसायनों पर हमारी
निर्भरता को कम करते हैं। क्षेत्र में प्रमुख शत्रुजीवों के लिए प्रतिरोधी शस्य प्रजातियों
का उपयोग आईपीएम की सर्वोत्तम रणनीतियों में से एक है। इसमें प्रतिरोधी किस्म के
बीज की खरीद में केवल एक बार का निवेश शामिल है और यह शत्रुजीव प्रबंधन प्रक्रियाओं
की उन सभी जटिलताओं से राहत प्रदान करता है जो फसल में शत्रुजीव के आक्रमण के बाद
अपनाए जाते हैं। जब तक कि प्रबंधन के उपाय प्रभावकारी हों, तब तक शत्रुजीव से होते
रहने वाली हानि के चलते प्रतिरोधी किस्मों के उपयोग की विधि शत्रुजीव नियंत्रण/प्रबंधन
के अन्य विकल्पों/उपायों की तुलना में आर्थिक रूप से अधिक लाभकारी ठहरती है। आईपीएम
के अनुप्रयोग से मृदा की कार्बनिक और सूक्ष्मजीववैज्ञानिक स्थिति में सुधार होता
है जो कृषि में पादप संरक्षण रसायनों के अनुप्रयोग के स्तर को नीचे लाने में
निश्चय ही सहायक सिद्ध होगा तथा मृदा पारिस्थितिक वैशिष्ट्य को बढ़ावा देते हुए संपोष्य
कृषि में महत्वपूर्ण योगदान देगा।
खेती
की प्रक्रिया का अनुकूलन: आईपीएम शत्रुजीव से शस्य
हानि को कम करने के लिए कृषि की प्रक्रिया के अनुकूलन को रेखांकित करता है। अधिकतम
संभव रिटर्न प्राप्त करने की दिशा में यह संसाधन और कृषि निवेशों का इष्टतम उपयोग
सुनिश्चित करता है।
कुछ उदाहरण:
भारत में भारतीय
कृषि अनुसंधान परिषद्-राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबंधन अनुसंधान केन्द्र (आईसीएआर-नेशनल
सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट) ने कई फसलों में आईपीएम मॉड्यूल्स की प्रभावकारिता
का आकलन करने के लिए देश भर में कई परीक्षण किए हैं और बीदर (कर्नाटक) में चने में
२.४ के लागत : लाभ अनुपात के साथ इसकी उपज में १९७% प्रतिलाभ की सूचना दी है (शर्मा एवं साथी (२०१६)। इसी अध्ययन में, अरहर में आईपीएम मॉड्यूल को अपनाने के
बाद ४.० के लागत:लाभ अनुपात के साथ इसी स्थान पर उपज में १६४% की वृद्धि की सूचना मिली है। सरसों में माहू के प्रबंधन के साथ एक अध्ययन में कुल आय में रु.१७२३५.१७/हेक्टेयर
की वृद्धि के साथ उपज में २६७.२५% की वृद्धि दर्ज की गई, और
उच्चतम लागत:लाभ अनुपात ११.८१ दर्ज किया गया (पांडे एवं सिंह (२००८)। राजस्थान के श्रीगंगानगर में मूँगफली
में तीन आईपीएम मॉड्यूल्स की आर्थिक व्यवहार्यता की जाँच करते हुए प्रथम मॉड्यूल के
साथ शुद्ध आय में ७३.७६% के वृद्धि की सूचना है (सिंह एवं साथी (२०१६)।
इसलिए,
यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि किसानों की आय में संभावित वांछित
वृद्धि लाने के लिए आईपीएम में न केवल फसल उत्पादकता में वृद्धि करने की क्षमता है,
बल्कि रासायनिक कीट प्रबंधन पर खर्च में पर्याप्त कमी और फसल
पारिस्थितिकी की प्रकृति के निकट बहाली के लिए भी पर्याप्त सामर्थ्य है।
Good sir
ReplyDeleteआपका अनेक आभार मित्र!! मुझे और भी अच्छा लगेगा यदि आप इसे अपने मित्रों और अन्य सम्बंधित लोगों में शेयर करेंगे.
DeleteNice and knowledgeful for us
ReplyDeleteThank you so much! This keeps me running.
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